देहरादून – आपको याद होगा पिछले वर्ष भू-कानून को लेकर प्रदेश में काफी हंगामा हुआ था लेकिन मामला ऐन चुनावों के मौके का था तो दोनों बड़ी पार्टियों में से कोई भी इस मुद्दे पर खुलकर नहीं बोला, हाँ दबी जुबान में ज़रूर भू-कानून का समर्थन किया. प्रदेश में आसमान छू रहे ज़मीनों के दाम तथा मैदानी क्षेत्रों में बढ़ते हुए जनसँख्या असंतुलन को लेकर प्रदेश के नागरिक हिमाचल जैसा भू-कानून अमल मे लाने के पुरजोर समर्थन में हैं.
आज सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भू-कानून को लेकर सरकार का ब्लू प्रिंट जनता के सामने रखा की किस तरह वो इस कानून को जनता के हित के लिए इस्तेमाल करना चाहतें हैं लेकिन विपक्षी पार्टी ने सत्ता पक्ष को घेरना शुरू कर दिया है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य और पूर्व सीएम हरीश रावत ने एक स्वर में कहा कि समिति की सिफारिशें भू-सुधार की बजाय भूमि की खरीद-फरोख्त सरकार के चहेते उद्योगपतियों एवं बडे लोगों तक सीमित करने जैसी हैं।
मुख्यमंत्री धामी ने भू-कानून को लेकर कहीं ये बातें
“हम उत्तराखंड में आने से किसी को नहीं रोक रहें हैं, निवेशकों को भी नहीं रोक रहें हैं लेकिन उत्तराखंड की ज़मीनों का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए” – मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी
“उत्तराखंड की ज़मीनों को हम लुटने नहीं देंगे, बर्बाद नहीं होने देंगे” – मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी
“ज़मीनों की बंदरबाट को खत्म करके अच्छा भू-कानून राज्य में लागु करेंगे” – मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी
क्या कहा नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्या ने ?
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्या ने कहा की “भू-कानून में सुधार के लिए बनाई गई उच्च अधिकार प्राप्त समिति की संस्तुतियों से कोई नादान व्यक्ति भी निष्कर्ष निकाल सकता है कि , राज्य सरकार “उच्च अधिकार प्राप्त समिति” के गठन के समय से लेकर रिपोर्ट पेश करने तक समिति के नाम पर जनता और मीडिया का ध्यान प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों से भटकाने की कोशिश कर रही है। “
भाजपा सरकार ने पिछले 4 सालों से बिभिन्न प्रयोजनों के लिए जमीन खरीदने की अनुमति देकर अपने खास लोगों को उत्तराखंड की बहुमूल्य भूमि की नीलामी की है । उन्होंने बताया कि , उत्तराखंड में जमीन की खुली नीलामी की छूट की संभावना और भूमि का अनियंत्रित क्रय – विक्रय , 6 दिसंबर 2018 के बाद तब शुरू हुआ था जब पिछली भाजपा सरकार उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश) जमींदारी विनाश एवम भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 143(क) और 154 (2) में संशोधन कर उत्तराखंड में औधोगिकीकरण ( उद्योग , पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य ) ,कृषि और उद्यानिकी के नाम पर किसी को भी , कंही भी , कितनी ही मात्रा में जमीन खरीदने की छूट दे दी थी। उन्होंने दावा किया कि , इन नियमों में बदलाव करने के बाद पिछले 4 सालों में भाजपा सरकार ने अपने चहेते उद्योगपतियों , धार्मिक और सामाजिक संगठनों को अरबों की जमीनें खरीदने की अनुमति दी है।”
पूर्व सीएम हरीश रावत ने भी जताई चिंता
हमारी खेती व भूमि पर बहुत गम्भीर ख़तरा मँडरा रहा है । यदि इसका हल हमने नही निकाला तो इतिहास हमें माफ़ नही करेगा ।सरकार को इस दिशा में सतर्क हो कर पहल करनी चाहिए ।भावी पीड़ी के पुश्तैनी अधिकारों को सुरक्षित रखना हमारा नैतिक ज़िम्मेदारी है ।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बोले की अपने चहेतों उद्योगपतियों के लाभ के लिए की जा रहीं सिफारिशें
इस समिति की सिफारिश पर जमीन पाने वाले लोगों के उद्योगों में स्थानीय बेरोजगारों को 70 फीसदी रोजगार देने का दावा कैसे किया जा रहा है? भूमि खरीद के बाद भूमि का सदुपयोग करने के लिए दो वर्ष की अवधि को तीन साल करने की सिफारिश चहेते उद्योगपतियों को की मित्र करना भर है।