देहरादून के रेलवे स्टेशन पर उर्दू में लिखे साईनबोर्ड को लेकर फिर से चर्चाओं का बाज़ार गर्म है. गौरतलब है की पहले भी उर्दू में लिखें ‘देहरादून’ स्टेशन के नाम को लेकर विवाद हो चूका है जिस पर रेलवे स्टेशन ने देहरादून का नाम संस्कृत में ‘देहरादूनम’ कर दिया था बाद मेंरेलवे ने कहा की वो उर्दू में लिखे नाम को भी नहीं हटायेंगे
यात्रियों की सुविधा के लिए बनायीं गयी एक समिति जिसमे 12 सदस्य हैं, उनमे से एक सदस्य अभीजीत दास की नज़र उर्दू में लिखे नाम साइन बोर्डों पर पड़ी. यहां तीन भाषाओं में स्टेशन का नाम लिखा था। इसमें सबसे ऊपर उर्दू में दून स्टेशन का नाम था। उन्होंने इसे हटाने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड हिंदी भाषी प्रदेश है। उत्तराखंड की द्वितीय भाषा संस्कृत है और अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा है, लेकिन यह राज्य उर्दू भाषी नहीं है, इसलिए यहां से उर्दू के साइन बोर्ड हटने चाहिए।
हिन्दुस्तान अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार अभिजीत दास दून स्टेशन से उर्दू भाषा वाले साइन बोर्ड हटाने की संस्तुति करेंगे। यह स्टेशन 1889 में बना हुआ, तब विभाजन नहीं हुआ था। हो सकता है कि तब स्टेशन का नाम उर्दू में रहा हो, लेकिन अब नहीं होना चाहिए।
आपको बताते चलें की दून रेलवे स्टेशन पर उर्दू में लिखा नाम मिटाकर संस्कृत में लिखने को लेकर पहले विवाद हो चुका है। फरवरी 2020 में उर्दू की जगह इस स्टेशन का नाम संस्कृत में ‘देहरादूनम्’ लिख दिया गया था। इसके बाद रेलवे ने स्पष्ट किया था कि किसी भी स्टेशन से उर्दू भाषा में लिखे नाम को नहीं हटाया जाएगा। साइन बोर्डों पर अतिरिक्त भाषा में नाम लिखा जा सकता है।