यह पोस्ट उत्तराखंड विशेष है, ध्यान से पढ़िएगा। लंबी हो सकती है लेकिन शायद आपकी आँखें खुल जाएँ सरकारों के खेल प्रेम को लेकर। जरूरी लगे तो शेयर कीजिए…. आइए अंतर्राष्ट्रीय भारतीय महिला टीम की खिलाड़ी एकता बिष्ट के बारे में संक्षिप्त विवरण जानते हैं।
■ 2017 में आईसीसी ओडीआई प्लेयर ऑफ द इयर
■T 20 में हैट्रिक लेने वाली पहली भारतीय महिला
■2 बार 5 विकेट लेने वाली पहली भारतीय महिला
■97 विकेट वनडे मैचों में
■53 विकेट t20 मैचों में
■एकता विश्व कप उपविजेता टीम की सदस्य रही
■एशिया कप विजेता टीम की सदस्य रही
■विश्वकप, T20 विश्वकप के मैचों में प्लेयर ऑफ द मैच रही
■राज्य की प्रथम अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी।
ये शानदार रिकॉर्ड है इस खिलाड़ी का। वो एक उदाहरण बनी इस छोटे और खेल सुविधाओं से महरूम राज्य के लिए। राज्य में दोनों सरकारों ने एकता के शानदार प्रदर्शन को लेकर खुद को जनता में खूब प्रचारित किया और वही बड़ी बड़ी बातें बोली गईं जो आजकल फिर से ट्रेंड में है ओलंपिक को लेकर।
आपको अरविंद पांडे जी का वो बयान याद न हो तो याद दिला दूँ कि “हम एकता को ऐसा सम्मान देंगे जो आजतक किसी को नहीं मिला होगा”। जनता ने तालियाँ बजाईं, हमने भी बजाईं। तालियाँ बंद हुईं, वादे हवा हुए। हम तालियों के अभिशप्त हैं, वो भूलने के अभ्यस्त।
सूबे की सरकार अपने सितारों को सम्मान देने में, उन्हें प्रोत्साहित करने में, संरक्षित करने में हमेशा पीछे रह जाती है। वह चार दिन के बाद भूल जाती है कि इतने संघर्षों से निकल कर अंतर्राष्ट्रीय पर अपनी पहचान बनाने तक के इस सफर में खिलाड़ी ने क्या क्या सहा है। क्या सत्ता में बैठे लोग नहीं जानते कि यह खिलाड़ियों और उन निस्वार्थ प्रशिक्षकों की अथक मेहनत है जो कामयाब होती है, वह अपने सीमित संसाधनों में अपनी जान झोंक देते हैं तब जाकर सफलता तक पहुँचते हैं। कितने खिलाड़ी तो इन परिस्थितियों में सपने को मार कर अपने जीवन निर्वाह के सहारे खोजने निकल जाते हैं। और जब कोई खिलाड़ी अपनी मेहनत और तपस्या से मंजिल तक पहुँचता है तो क्रेडिट लेने का धूर्त खेल सियासतदान किस बेहतरी से खेलते हैं। यह हकीकत है, इसे समझिए कि आपको दिखाया क्या जाता है और हकीकत में होता क्या है। उत्तराखंड इस मामले में अन्य राज्यों से भी गया गुजरा है।
इसका उदाहरण देखिए…
पंजाब सरकार ने हरमन प्रीत को DSP बनाया ।
सुषमा वर्मा को हिमांचल की वीरभद्र सरकार ने DSP बनाया।
असम सरकार ने हिमा दास को DSP बनाया ।
और हमारी एकता को क्या ऑफर दिया सरकार ने जानते हैं आप? एकता को SI बनाने का ऑफर दिया सूबे की सरकार ने। क्या ये एकता की उपवब्धियों को कमतर समझना नहीं है? इसे आप सम्मान कहेंगे या अपमान? यही तरीका है अपने सितारों को सहेजने का?
मिताली को आंध्रप्रदेश सरकार ने 1 करोड़ रुपये दिए, लेकिन एकता की उपलब्धियों को सरकार ने सिर्फ पाँच लाख के लायक समझा। यह हमारी खेलों और खिलाड़ियों के प्रति सोच है। सरकार सियासी फायदा और क्रेडिट लेने में सबसे आगे रहेगी और उसके बाद फिर “आप कौन? “
एक वाकया और है शायद आपको याद हो। देहरादून में साइकिल रैली आयोजित की थी सरकार ने, एकता उसमें अतिथि के रूप में शामिल थी लेकिन उसे मंच से उतार कर नीचे बैठा दिया गया । यह अपमान कैसे सहा होगा और इसका क्या प्रभाव पड़ा होगा एकता पर, कहना मुश्किल है।
बहरहाल इतनी चर्चा करना इसलिए जरूरी था कि जो जो एकता के साथ हुआ, उसी राह पर वंदना कटारिया हैं। सरकार ने उन्हें ‘महिला एवं बाल विकास विभाग’ का ब्रांड एंबैसडर बनाया है जो पहले एकता को बनाया गया था। लेकिन उसके बाद न सरकार को एकता याद रही ना उसकी उपलब्धियाँ।
आप नए तैयार होते खिलाड़ियों की सहायता नहीं कर सकते, उन्हें सुविधाएँ नहीं दे सकते, खेल संसाधनों को नहीं बढ़ा सकते, तो कम से कम जो खिलाड़ी इन सब विषम परिस्थितियों में भी प्रदेश के नाम को विश्व स्तर पर लेकर जाते हैं, उनको यथोचित सम्मान की व्यवस्था तो कर ही सकते हैं।
यह एक खिलाड़ी की व्यथा नहीं है, यह हजारों की व्यथा होगी। मैंने एकता का संघर्ष देखा है। उसने अल्मोड़ा जैसे शहर से विदेशी पिचों तक का सफर अपने बलबूते और मेहनत से किया है। उसमें सरकार का रत्ती भर भी सहयोग नहीं रहा। कोच लियाकत अली सर और एकता की मेहनत और लगन ने उसे यहाँ तक पहुँचाया। लेकिन सरकार अपने न्यूनतम कर्तव्य पालन में भी असफल रही है, वह उसको जायज सम्मान से भी नवाज नहीं सकी।
एक समाज के तौर पर हम भी असफल हैं। सरकारों के साथ साथ, मीडिया के साथ साथ, हम भी भूल जाते हैं कि सितारों की चमक को सम्मान देना सरकारों का नैतिक दायित्व होना चाहिए। हम अपने युवाओं के सामने एक उदाहरण रख सकते हैं।
एकता ने अपनी मेहनत से अपना काम कर दिया। लेकिन सरकार और समाज के रूप में, हम आज भी अधूरे हैं। यह आपकी निष्ठा पर सवाल है कि आप खिलाड़ियों का सिर्फ सियासी फायदों के लिए इस्तेमाल करते हैं। उन्हें उनका उचित सम्मान दीजिए, हक दीजिए ताकि आने वालों युवाओं में कम से कम एक उम्मीद तो पैदा हो।
जब आप राज्य के अंदर अपने युवाओं को सम्मान नहीं दे पाएँगे, तो राष्ट्रीय स्तर पर किसी सम्मान की ओर देखना तो असंभव ही मानिए। राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों के लिए नाम भेजना और फिर उसके पीछे खड़े रहना, इसके लिए आपको अपने खिलाड़ियों के प्रति प्रेम और सम्मान दोनों होना चाहिए।
यह लेख एस.पी.यादव की फेसबुक वाल से लिया गया है