उत्तराखंड न्यूज़ एक्सप्रेस स्पेशल रिपोर्ट – आगामी विधानसभा चुनावो में यधपि 6 महीने से भी कम समय रह है और सभी राजनितिक पार्टियाँ अपने वोटरों को लुभाने में लग गयी है. हालाँकि की अभी तक आम आदमी पार्टी को छोड़कर किसी अन्य पार्टी ने सड़कों पर चुनावी बिगुल नही फूंका है लेकिन अंदरखाने खबर यह है की सभी पार्टियाँ तैयारियों में मशगूल है. जहाँ कांग्रेस ने पंजाब की तर्ज़ पर चार कार्यकारी अध्यक्षों को प्रदेश की कमान सौंपी है वहीँ भाजपा ने अभी तक अपने पत्ते नही खोले है. दो बार विधायक रह चुकें वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हालाँकि कांग्रेस के प्रदेश कमानदार हरीश रावत की बराबर अनुभव ना रखतें हो लेकिन भाजपा का एक बड़ा तबका उनका भरपूर समर्थन करता है तथा आरएसएस की छत्रछाया में उनको उपहार स्वरुप मिलने वाले पौधे को विकसित होने में अधिक सूखे का सामना नही करना पड़ेगा.
अगर हम पिछले चुनावों पर नज़र दौडाएं तो समीकरण बहुत आसान नजर आते हैं क्योंकी जहाँ भाजपा को लगभग 47 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे वहीँ प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को 34 प्रतिशत से ही संतोष करना पड़ा था. बचा हुआ 7% वोट मायावती के हाथी पर सवार हुआ लेकिन बहुजन समाज पार्टी से अभी अधिक 10% निर्दलीय कैंडिडेट खींच ले गये.
मोटे आंकड़ों के अनुसार देखा जाए तो बहुजनसमाज पार्टी तथा निर्दलीय वोट अगर कांग्रेस के खेमे में चला जाता तो आज के हालात कुछ और हो सकतें थे लेकिन राजनीती के रेगिस्तान की रेत इतनी आसानी से पकड़ में नही आती. 2017 के चुनाव में दो ही पार्टियाँ के बीच मुकाबला था लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी के राजनीती में कूदने पर उत्तराखंड के मुख्य शहरों में समीकरण त्रिकोण होता नज़र आ रहा है.
आम आदमी पार्टी द्वारा देहरादून में दिल्ली के सीएम केजरीवाल के तीन चुनावी वादों को प्रमुखता से प्रचार कर रही है. 300 यूनिट बिजली फ्री, पुराने बिल माफ़ तथा 24 घंटे बिजली. उत्तराखंड के लोगो को यह फ्री बिजली स्कीम कितनी पसंद आती है वह तो चुनाव के नतीजे बता देंगे लेकिन किस प्रकार से आम आदमी पार्टी चुनावी प्रचार में सबसे पहले कूदी है तथा बड़े पैमाने पर चुनावी प्रचार कर रही है वो सत्तानशीन पार्टी के लिए सिर दर्द साबित करने वाला हो सकता है. हालाँकि की आम आदमी पार्टी के बिजली के मुद्दों से बड़े मुद्दे पहाड़ में उपस्थित है जैसे पलायन, बेरोज़गारी, नशाखोरी, भू कानून लेकिन आम आदमी पार्टी द्वारा सबसे आसान मुद्दा चुना जाना या तो उनकी दूरदर्शिता को दर्शाता है या उत्तराखंड में राजनीती की गहरी समझ ना होने को. वक़्त ज्यादा नही बचा है evm के बटन से किस्मत इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में बंद हो जाएगी और बता देगी की जनता ने आखिर किसे पसंद किया है.
अब अगर बात की जाए कांग्रेस की तो उसके लिए इस चुनाव की राहें काफी मुश्किल भरी होने वाली है हालाँकि उन्होंने इस बार अपनी कार्यशैली में काफी बदलाव किया है जैसे एक की जगह चार कार्यकारी अध्यक्षों का बनाया जाना तथा सभी को कुछ खास विधानसभा की कमान सौंपना, क्योंकी कांग्रेस जानती है की अगर भाजपा ने पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा तो यह प्रदेश जीतना उसके लिए काफी टेड़ी खीर साबित हो जाएगी. हालाँकि कांग्रेस के पास अनुभव की कमी नही है लेकिन पिछले कुछ दिनों में अंतर्कलह ने बता दिया है की जो परदे की पीछे कहानी कुछ और हो सकती है. कांग्रेस के सबसे बेचैनी भरी बात ओवैसी की पार्टी aimim का प्रदेश की राजनीती में एंट्री है ख़ास तौर पर उन क्षेत्रों में जहाँ मुस्लिम मतदाताओ की संख्या अधिक है, आपको बताते चलें की उत्तराखंड में समाजवादी एवम बहुजन समाज पार्टी की उपस्थिति कम होने के कारण मुस्लिम वोटरों की पहली पसंद कांग्रेस ही रहती है लेकिन सोशल मीडिया के रुझानों के अनुसार मुस्लिम वोटर भी कांग्रेस की हाशिये में धकेलने वाली राजनीती से तंग आ चूका है इसीलिए उसे भी ऐसी किसी पार्टी की तलाश है जहाँ उसे पहचान मिल सके. पिछले दिनों कांग्रेस ने विधान सभा चुनावों को लेकर पदाधिकारियों की जो लिस्ट जारी की थी उसमे भी किसी मुस्लिम को जगह नही दी गयी.
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कांग्रेस से मुसलमानों की नाराज़गी को लुभाने का अवसर असदुद्दीन ओवैसी ने बखूबी कैश किया और उत्तराखंड की राजनीती में कदम रखते हुए जल्दी जल्दी तराई के कई स्थानों पर जिलाध्यक्ष कार्यकारिणी बना डाली. हालाँकि कांग्रेस के मुस्लिम परंपरागत वोटरों में पतंग इतनी ना उड़ पाए लेकिन मुस्लिम युवाओं ने इस डोर को पकड़ रखा है. मुस्लिम युवाओं के सहारे ओवैसी का कोई भी सीट जीतना लगभग नामुमकिन नज़र आता है लेकिन भाजपा के कट्टर वोटों को स्पर्श ना करते हुए ओवैसी सबसे बड़ा नुक्सान कांग्रेस का ही कर सकतें हैं.
नीचे ग्राफ में देखिये ओवैसी की पार्टी से कांग्रेस के युवा मुस्लिम वोटरों तथा कुछ प्रतिशत निर्दलीय उम्मीदवारों का वोट खिंचने में अधिक सक्षम नज़र आती है, अगर प्रतिशत के मुताबिक 10% कांग्रेस के वोट ओवैसी खींच ले जातें है तथा झाड़ू चलाकर 10% वोट पर आम आदमी पार्टी सफाई कर देती है तो कांग्रेस के पास उसके परंपरागत वोटरों के अलावा बहुत कम मार्जिन बच जाता है वहीँ गद्दी पर बैठी भाजपा की उन वोटरों पर नज़र गड़ाएं बैठी है जो कांग्रेस की नीतियों से परेशान है. उसका भी मुख्य लक्ष्य कांग्रेस के ढुलमुल वोटरों पर अतिक्रमण का होगा, इस हिसाब से देखा जाए तो कांग्रेस को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. अगर उसे यह मार्जिन पूरा करना है तो भाजपा से मोहभंग हुए वोटरों को लुभाना पड़ेगा जिसके लिए उसे आम आदमी पार्टी से बड़ा कोई मुद्दा या राजनितिक दांव पेंच खेलना होगा.
ग्राफ के अनुसार अगर भाजपा की बात की जाए तो उसके लिए सबसे अच्छी बात यह है की बीजेपी के पास एक बड़ा तबका उसका पारंपरिक वोटर है जो किसी भी हालात में दूसरी पार्टियों के खेमे में नही जायगा, लेकिन यह बात हर पार्टी जानती है की अगर एक ऐसी लिस्ट बनायीं जाए जिसमे कट्टर समर्थक वोटर उपर तथा नार्मल फिर उसके बाद ढुलमुल रवैये वाले वोटर रखे जाएँ तो नीचले पायदान की एक बड़ी संख्या निकलकर सामने आती है. भाजपा के लिए सबसे सिरदर्द वाली बात यह होगी की जिन वोटरों का उससे मोहभंग हुआ है वो कहीं कांग्रेस के खेमे में ना चले जाए, ऐसा किसी कारणवश ऐसा संभव होता है तो निसंदेह यह भाजपा के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर देगा. भाजपा को सबसे पहला कार्य तो यह करना होगा की अपने पाले में अतिक्रमण कर रही आम आदमी पार्टी को रोके तथा कांग्रेस के ढुलमुल वोटरों में सेंधमारी की संख्या बढ़ाएं.
उत्तराखंड न्यूज़ एक्सप्रेस के लिए मोनिस मलिक का लेख
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