कोविड संक्रमण की वजह से लगाए गए लॉकडाउन का दंश ऐसा है कि लोग उससे उबर नहीं पा रहे हैं. उत्तराखंड के कई गांवों में हजारों लोग सिर्फ इसलिए लौट आए हैं, क्योंकि लॉकडाउन की वजह से उनकी बेहतर जीवन की उम्मीद टूट गई है. इनमें से अधिकांश लोग ऐसे हैं जिनके पास रोजगार के अवसरों की कमी थी, लिहाजा उनके पास आजीविका कमाने के लिए फिर से घर छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. पहले घर से पलायन किया तो दूसरे शहरों में जाकर बस गए, लेकिन अब फिर से अपने गांवों का रुख करने के लिए मजबूर हैं.
एजेंसी के मुताबिक ग्रामीण विकास और प्रवासन रोकथाम आयोग के उपाध्यक्ष एस एस नेगी ने कहा कि जो लोग यहां से पलायन कर गए थे, उनमें से सिर्फ 5-10 प्रतिशत लोग ही वापस आए हैं. इसमें ज्यादातर ऐसे लोगों हैं, जिनके पास शहरों में नौकरी नहीं थी.
नेगी ने कहा कि लॉकडाउन के बाद अपने गांवों में रह गए लोगों को काम और सम्मान का जीवन देना सबसे बड़ी चुनौती थी. उन्होंने कहा कि पर्यटन जैसे क्षेत्र को बढ़ावा देना पलायन पर ब्रेक लगाने का एकमात्र तरीका है, क्योंकि पहाड़ियों में बड़े पैमाने पर औद्योगीकरण संभव नहीं है.
नेगी ने बताया कि सीमावर्ती राज्य के कम से कम 1,702 गांव निर्जन हो गए हैं, क्योंकि यहां के लोगों ने नौकरी और बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की तलाश में शहरी क्षेत्रों में पलायन किया है. पौड़ी और अल्मोड़ा जिले पलायन से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं, उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के गांवों से कुल 1.18 लाख लोग पलायन कर चुके हैं.
दरअसल, उत्तराखंड ने 9 नवंबर को अपनी स्थापना की 22वीं वर्षगांठ मनाई थी. उत्तराखंड के कई गांव प्रवासन की जटिल समस्या से जूझ रहे हैं. पहले लोग मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में पलायन करते थे, लेकिन हाल के वर्षों में लोग गांवों से आसपास के शहरों में जा रहे हैं. हम हरिद्वार के गांवों का दौरा कर रहे हैं. हमने ये पाया है कि लोग राज्य से बाहर नहीं जा रहे हैं, बल्कि जिले के विभिन्न शहरों में जा रहे हैं.