उत्तराखंड देवभूमि होने के साथ साथ कलाकारों की भी भूमि है. यही कारण है की आज बॉलीवुड से लेकर तमाम खेल मैदानों में उत्तराखंड के कलाकार अपनी प्रतिभा का जौहर दिखा रहे हैं. एक ऐसी ही कलाकार हुई हैं कबूतरी देवी जो की उत्तराखंडी लोकगायिका थीं। उन्होंने उत्तराखंड के लोक गीतों को आकाशवाणी और प्रतिष्ठित मंचों के माध्यम से प्रसारित किया था। सत्तर के दशक में उन्होंने रेडियो जगत में अपने लोकगीतों को नई पहचान दिलाई। उन्होंने आकाशवाणी के लिए लगभग 100 से अधिक गीत गाए। कुमाऊं कोकिला के नाम से प्रसिद्ध कबूतरी देवी राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित थीं।
चम्पावत में जन्मी कबूतरी देवी को लेकर आज सबसे बड़ी बात जो चर्चा करने योग्य है वो यह की कबूतरी देवी को विभूषित करने के लिए भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष कुंदन लटवाल ने मुख्यमंत्री धामी के साथ उड़ते हेलिकॉप्टर में इस विषय पर चर्चा की तथा साथ ही साथ मुख्यमंत्री को हस्लिखित एक पर्ची भी दी जिससे की बात और अधिक पुख्ता हो जाए. इस बात को स्वम् प्रदेश अध्यक्ष कुंदन लटवाल ने अपनी फेसबुक पोस्ट के माध्यम से सोशल मीडिया पर साझा किया.
अपने निवेदन में कुंदन लिखतें हैं की “कबूतरी देवी ज़िला पिथौरागढ़ से लोक गायक थी, उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन लोक संस्कृति को बचाने में लगाया और जगह जगह लोगो को पहाड़ के लिए जागरूक किया, नम्र निवेदन है की उनको सरकार से विभूषित किया जाए जिससे लोक संस्कृति संरक्षित हो सके – ” कुंदन लटवाल, प्रदेश अध्यक्ष युवा मोर्चा”
कबूतरी देवी ने लोक गायन की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने पिता से ही ली। पहाड़ी गीतों में प्रयुक्त होने वाले रागों का निरन्तर अभ्यास करने के कारण इनकी शैली अन्य गायिकाओं से अलग है। विवाह के बाद इनके पति श्री दीवानी राम जी ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और इन्हें आकाशवाणी और स्थानीय मेलों में गाने के लिये प्रेरित किया। उस समय तक कोई भी महिला संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिये नहीं गाती थीं। उन्होंने पहली बार उत्तराखंड के लोकगीतों को आकाशवाणी और प्रतिष्ठित मंचों के माध्यम से प्रचारित किया था। 70-80 के दशक में नजीबाबाद और लखनऊ आकाशवाणी से प्रसारित कुमांऊनी गीतों के कार्यक्रम से उनकी ख्याति बढ़ी।
उन्होने पर्वतीय लोक संगीत को अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाया था। उन्होने आकाशवाणी के लिए करीब 100 से अधिक गीत गाए। उन्हें उत्तराखण्ड की तीजन बाई कहा जाता है। जीवन के 20 साल गरीबी में बिताने के बाद 2002 से उनकी प्रतिभा को सम्मान मिलना शुरू हुआ। पहाड़ी संगीत की लगभग सभी प्रमुख विधाओं में पारंगत कबूतरी देवी मंगल गीत, ऋतु रैण, पहाड़ के प्रवासी के दर्द, कृषि गीत, पर्वतीय पर्यावरण, पर्वतीय सौंदर्य की अभिव्यक्ति, भगनौल न्यौली जागर, घनेली झोड़ा और चांचरी प्रमुख रूप से गाती थी।