यह लेख अशोक पाण्डेय की फेसबुक वाल से लिया गया है.
अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की मॉल रोड पर हिन्दुस्तानियों को चलना मना था. ऐसा करने पर उन्हें जुर्माना भरना पड़ता था. उनके लिए लोअर मॉल रोड यानी ठंडी सड़क बनाई गयी थी.
कलक्टर के दफ्तर में अर्दली की नौकरी करने वाले लम्बे तड़ंगे प्रताप सिंह बिष्ट पर अक्सर दौरों पर आउट ऑफ़ स्टेशन रहने वाले एक जूनियर अंग्रेज अफसर की बेहद खूबसूरत बीवी का दिल आ गया और उसने उसे अपने घर पर बेबीसिटर की नौकरी पर लगा लिया. अंग्रेज मेमसाब का मुंहलगा होने के कारण दोस्तों के बीच प्रताप सिंह ख्याति, चुटकुलों और ईर्ष्या का सबब बना.
प्रताप सिंह को विधाता ने देह तो किसी देवता की बख्शी थी लेकिन उसका चेहरा बनाते समय काली स्याही का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया. जमाने भर की नाकें और होंठों बना चुकने के बाद उसके पास जितनी मिट्टी बची थी वह सारी उसने प्रताप के चेहरे के इन दो महत्वपूर्ण हिस्सों पर थपोड़ दी. संक्षेप में प्रताप सिंह बिष्ट को बदसूरत कहा जा सकता था.
कभी कभी बख्शीश में मिल जाने वाली अंगरेजी हुस्की की बोतल को प्रताप सिंह अपने दोस्तों के लिए ले आया करता. वह खुद नहीं पीता था अलबत्ता पी रहे दोस्तों को अंग्रेजों के रहन सहन के बारे में तमाम झूठे-सच्चे किस्से सुनाने में उसे मजा आता था. साहब के बंगले के स्टोर रूम में धरे टॉयलेट पेपर के रोल्स से भरी गत्ते की पेटियों का जिक्र आने पर वह अंग्रेजों के दिशा-मैदान जाने के विषय पर खूब भदेस बातें बनाता और दोस्त ठठा कर हंसते. ये हरामखोर, कृतघ्न दोस्त उसकी किसी भी बात का यकीन नहीं करते थे. वे सपने में भी तसव्वुर नहीं कर सकते थे कि जूलिया नाम्नी वह परियों-सरीखी मेम परताप भिसौणे के बगल में खड़ी कैसी दिखाई देगी.
बहरहाल मेमसाब की कृपादृष्टि के चलते प्रताप सिंह बिष्ट अंग्रेज अफसरों के इनर सर्कल का हिस्सा बन गया था. जब एक बार फ्लैट्स में हो रहे क्रिकेट मैच में एक खिलाड़ी कम पड़ने और जूलिया के कहने पर प्रताप सिंह बिष्ट को ग्यारहवें नंबर पर बल्लेबाजी करने भेजा गया तो उसने फ़ौज की नई-नई नौकरी में लगे एक युवा अंग्रेज सार्जेंट की तीन लगातार गेंदों पर छक्के ठोक दिए. तीसरी गेंद तो झील में चली गयी. कुमाऊं के इतिहास में गुलाम भारतीयों द्वारा अंग्रेज साहबों की ऐसी भद्द पीटे जाने की दूसरी घटना कहीं भी दर्ज नहीं है.
समय के साथ-साथ जूलिया मेमसाब की प्रताप सिंह बिष्ट पर निर्भरता बढ़ती चली गयी और फिर एक दिन ऐसा भी आया कि जूलिया मेमसाब ने प्रताप सिंह को उसकी जिन्दगी में पहली बार मॉल रोड पर अपने साथ वॉक करने का स्पृहणीय मौक़ा मुहैया कराया. प्रताप सिंह को उनके बच्चे की प्रैम अर्थात बच्चागाड़ी को धकेलते हुए उनके साथ चलने का काम मिला.
मॉल रोड पर चल रहे हर अंग्रेज ने जहां इस कुफ्र को हिकारत से देखते हुए नाक-भौं सिकोड़ी वहीं यह दृश्य ठंडी सड़क पर चल रहे पहाड़ियों को इस कदर दिलचस्प लगा कि दोनों के तल्लीताल से मल्लीताल तक पहुँचते न पहुँचते आधा शहर उनके समानांतर ईवनिंग वॉक कर रहा था. इन दर्शकों में प्रताप सिंह बिष्ट के करीब आधा दर्जन दोस्त भी थे और मुंह खोले, हतबुद्धि होकर उस अकल्पनीय को अपने सामने घटता देख रहे थे. मेमसाब के साथ उसका जोड़ा सचमुच बेमेल और अटपटा लग रहा था.
ऐसे में मल्लीताल चर्च के नजदीक सामने से वही छक्काखोर छोकरा सार्जेंट नमूदार हुआ. उसने सबसे पहले प्रताप सिंह को देखा. उसे देखते ही झील में गिरे तीसरे छक्के का रीप्ले उसके दिमाग में घूमने लगा. उसकी पहली प्रतिक्रया खीझ और गुस्से की हुई. वह डांट कर कहना चाहता था -“यू ब्लडी ब्राउनी इडर साब लोग का सरक में कैसे आना हिम्मट हुआ टुमारा!” लेकिन तभी उसकी निगाह जूलिया पर पड़ी जिसकी खूबसूरती देखते ही वह बताशे की तरह गल गया. जूलिया के साथ शुरुआती दुआसलाम के बाद उसने अदब से विदा ली और कनखियों से खीझ और क्रोध में प्रताप सिंह को देखते हुए तनिक जोर के स्वर में कमेन्ट किया – “हंह! ब्यूटी एंड द बीस्ट!”
उसके इस कमेन्ट को प्रताप सिंह के दोस्तों ने भी सुना और अगली शाम को उससे पूछा कि उसे डांटता हुआ गोरा अपनी भाषा में क्या कह रहा था.
प्रताप सिंह बिष्ट ने अदरक की बड़ी गांठ जैसी अपनी नाक पर उगी फुंसी को खुजाते हुए कहा – “क्या कह सकने वाला ठैरा बिचारा! लौंडा ही हुआ. बिस्ट इज ब्यूटीफुल कैरा था! और क्या!”
(लेखक कुमाऊ के जाने माने साहित्यकार हैं)