
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से मातृ और शिशु स्वास्थ्य को लेकर एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। बीते तीन महीनों में जिले में 18 गर्भवती महिलाओं और 63 नवजात शिशुओं की मौत हुई है। यह खुलासा देहरादून मुख्य विकास अधिकारी (CDO) की अध्यक्षता में हुई त्रैमासिक समीक्षा बैठक के दौरान हुआ।
आंकड़ों के बाद CDO ने सरकारी और निजी अस्पतालों, ब्लॉक चिकित्सा अधिकारियों, एएनएम और आशा कार्यकर्ताओं से विस्तृत रिपोर्ट मांगी। प्रभावित परिवारों से जुड़े मामलों का विश्लेषण करने के बाद उन्होंने सख्त निर्देश दिए कि ANC (प्रसव पूर्व देखभाल) से लेकर संस्थागत प्रसव और HBNC (गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल) तक गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की सतत निगरानी की जाए। साथ ही, मातृ-शिशु सेवाओं का लाभ हर स्थिति में सुनिश्चित करने को कहा गया। उन्होंने चेतावनी दी कि किसी भी स्तर पर लापरवाही मिलने पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) डॉ. मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि जिले में मातृ और शिशु मृत्यु के मामलों की नियमित समीक्षा की जा रही है। सभी ब्लॉक चिकित्सा अधिकारियों और चिकित्सा अधीक्षकों को गर्भवती महिलाओं व नवजात शिशुओं का उपचार सर्वोच्च प्राथमिकता पर करने के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि जिन क्षेत्रों में मृत्यु के मामले सामने आए हैं, वहां सुधारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं और आशा व एएनएम को विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है।
CMO के अनुसार, 18 मातृ मृत्यु के मामलों में केवल छह महिलाएं देहरादून निवासी थीं, जबकि 12 अन्य जिलों से इलाज के लिए यहां आई थीं। देहरादून की मातृ मृत्यु दर 42 है, जो राज्य (103) और राष्ट्रीय औसत (97) से कम है।
अप्रैल से जुलाई 2025 तक जिले में 0 से 5 वर्ष आयु के 63 बच्चों की मृत्यु दर्ज की गई, जिनमें प्रमुख कारण समय से पूर्व जन्म और कम वजन रहा। वर्तमान में जिले की शिशु मृत्यु दर 10.4 है, जबकि उत्तराखंड में यह 17 और राष्ट्रीय स्तर पर 20 है। पिछले वर्ष इसी अवधि में 22 मातृ और 100 शिशु मृत्यु दर्ज हुई थीं, जो इस वर्ष घटकर क्रमशः 18 और 63 पर आ गई हैं।