
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपने खिलाफ नकदी विवाद में उठे विवादों के बीच पद छोड़ने या स्वैच्छिक रिटायरमेंट लेने के सुझाव को सख्ती से ठुकरा दिया है। उन्होंने पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजय खन्ना को भेजे गए पत्र में कहा है कि न तो उन्हें अपनी बात रखने का मौका मिला और न ही जांच प्रक्रिया न्यायसंगत रही।
CJI की चिट्ठी को बताया ‘अनुचित दबाव’
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 6 मई 2025 को जस्टिस वर्मा ने तत्कालीन CJI संजय खन्ना को पत्र लिखकर उनके 4 मई के इस्तीफे के सुझाव को अस्वीकार कर दिया। जस्टिस वर्मा ने लिखा, “आपकी सलाह को मानना ऐसा होगा जैसे मैं एकतरफा और अनुचित निर्णय को स्वीकार कर रहा हूं, जबकि मुझे अपनी सफाई देने का अवसर भी नहीं दिया गया।”
48 घंटे में फैसला लेने को किया गया मजबूर
जस्टिस वर्मा ने आरोप लगाया कि उन्हें समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद केवल 48 घंटे में अपना जवाब देने और फैसला लेने का दबाव बनाया गया, जो पूरी तरह असंगत और न्यायिक सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने इस पूरी प्रक्रिया को अन्यायपूर्ण बताया।
मामला क्या है?
विवाद की शुरुआत उस समय हुई जब दिल्ली स्थित जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास के आउटहाउस में जल चुके नोट मिलने की जानकारी सामने आई। इस मामले की जांच के लिए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने तीन सदस्यीय समिति बनाई, जिसने वर्मा को दुराचार का दोषी माना।
हालांकि जस्टिस वर्मा का कहना है कि उन्हें आरोपों की कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई और न ही अपनी बात रखने का पूरा मौका मिला। उन्होंने जांच प्रक्रिया की समीक्षा और पुनर्विचार की मांग की है।
न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल
यह मामला अब देश की न्यायिक व्यवस्था की पारदर्शिता और आंतरिक अनुशासन प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर रहा है। क्या सुप्रीम कोर्ट के जज को बिना पक्ष सुने दोषी ठहराया जा सकता है? जस्टिस वर्मा की आपत्ति ने इस बहस को और गहरा कर दिया है।