उत्तराखंड न्यूज़ एक्सप्रेस – 4 जुलाई का दिन अमेरिका के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका रखता है लेकिन भारत के उत्तराखंड में उस दिन 45 वर्षीय युवा मुख्यमंत्री ने शपथ लेकर एक नया इतिहास रचा. उत्तराखंड के बीस वर्ष के इतिहास में 10 मुख्यमंत्री बदलते देख चुके लोगो का लिए किसी मुख्यमंत्री का अपना कार्यकाल पूरा करना अधिक मायने रखने वाली बात है. जिस जोर-शोर से खटीमा से विधायक पुष्कर सिंह धामी का शपथ ग्रहण समारोह हुआ तथा उसके लगभग 15 दिन बाद तक मुबारकबादों-शुभकामनायों का दौर जारी रहा, पद की गरिमा का संगीत सुनने में जितना मधुर लगता है लेकिन उसका विपरीत प्रभाव जनता की अपेक्षाओं में वृद्धि करता है.
आज उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पर प्रदेशवासियों की नज़र है पूर्व मुख्यमंत्री, जो कोरोना त्रासदी में लोगो तक अपनी पहचान नहीं बना पाए उनके पास ज़रूर महामारी एक बड़ा कारण हो सकता है लेकिन नए मुख्यमंत्री के लिए यह राह बहुत अधिक आसान होती नज़र नहीं आ रही है. जिसका सबसे बड़ा कारण हमने सीएम की घोषणा के समय देखा था जहाँ अपनी ही पार्टी के नाराज़ विधायकों को मान-मन्नौवल कार्यक्रम को प्राथमिकता देनी पड़ी थी. उस संकट पर तो जैसे तैसे पुष्कर सिंह धामी ने नियंत्रण पा लिया लेकिन उसके बाद जो सबसे बड़ा इम्तेहान सामने आ रहा है वो आगामी विधानसभा चुनावों में युवा मुख्यमंत्री से काफी मशक्कत करवाने वाला है.
अगर एक महीने के कार्यकाल की बात करें तो इस समय में सीएम धामी ने जनता में खासी चर्चा बटोरी है लोगो में उम्मीदें जगी है. एक के बाद एक निर्णय एवम सौगातें देकर फिलहाल सीएम लोगो के दिलों में जगह बनाते हुए नज़र आ रहें है. डेल कार्नेगी अपनी किताब ‘हाउ टू इन्फ्लुएंस पीपल’ में लिखतें है की एक (पॉलिटिशियन) राजनीतिज्ञ और एक (लीडर) नेता में काफी अंतर होता है एक अच्छा राजनीतिज्ञ लोगो में किसी भी मुद्दे को लेकर दिलचस्पी जगा देता है जबकि एक लीडर लोगो में उम्मीद जगाता है, जैसे की हमने सन 2014 के आस-पास देखा की किस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों के दिलों में उम्मीद जगाई हालाँकि प्रधानमंत्री उनसे पहले भी काफी गुजरें लेकिन किसी और पीएम को लेकर जनता ने इतना प्रेम और स्नेह नही दिखाया.
शपथग्रहण समारोह को लेकर ही सीएम धामी का सबसे पहला जो बयान चर्चा में आया वो अभिनन्दन समारोह में भेटं किये जाने वाले गुलदस्ते को लेकर था जिसमे उन्होंने पौधे का गमला देने का आग्रह किया और यह बात आते ही चर्चा का विषय बन गयी. अगर यहाँ किसी की तुलना ना करते हुए जनता के नज़रिए से देखा जाए तो जब कोई सीएम तथा पीएम नया चुना जाता है तब बाकी लोगो के लिए वो बिलकुल सफ़ेद कागज की तरह कोरा होता है और उसके कहे गये प्रथम ब्यान/शब्दों से ही उसकी छवि कोरे कागज पर आकार लेने लगती है.
मीडिया ने पूर्व मुख्यमंत्री के फटी जींस वाले वाले बयान को जिस एंगल से दिखाया वो उनकी छवि नकारात्मक गढ़ गया वहीँ पुष्कर सिंह धामी के प्रथम ब्यान (भेट स्वरुप पौधे) ने दिखाया की किस तरह मामूली सी मामूली बात पर भी सकारात्मक चर्चा बटोरी जा सकती है. उसके कुछ दिनों बाद सीएम का एक विडियो सामने आता है जिसमे वो प्रत्येक रविवार को अपने घर के आस-पास सफाई करने के आग्रह करते हुए नज़र आतें हैं इस कार्य में पुष्कर सिंह धामी ने अच्छे लीडर की सोच नज़र आती है क्योंकी एक कहावत है की “अगर आपको कामयाब होना है तो मेहनत करो और लक्ष्य हासिल करो और अगर आप ऐसा कोई लक्ष्य ढूढने में सफल हो जातें हैं जो जनता का भी लक्ष्य हो, तो अपनी मेहनत में जनता को भी शामिल कर लो, अब मेहनत जनता करेगी और आपको खुद लक्ष्य तक लेकर जाएगी”.
पिछले एक महीने से सीएम धामी के काफी ऐसे फैसले लिए हैं जो सराहनीय है लेकिन मीडिया में उन्हें उतनी जगह नहीं मिल पायी. जैसे की कन्याओं के जन्म को लेकर कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या के साथ शुरू की गयी मुख्यमंत्री महालक्ष्मी योजना, हालाँकि की इसमें लगभग 17 हज़ार महिलाओं को लाभ मिलने की बात की गयी है लेकिन शायद 17,000 लोगो तक यह बात अभी ना पहुंची हो तथा कल ही सीएम ने घोषणा की के सिविल सर्विस के प्री तथा मेन क्वालीफाई करने वालो अभियार्थियों को 50 हज़ार रुपए की धन राशि दी जाएगी. कुछ ऐसे कारण सामने आ रहें है जिनमे नयी योजनाओं को आरम्भ करने के बावजूद भी उतनी ख्याति प्राप्त नही हो पा रही है. उदहारण के तौर पर अगर हम देखें तो प्रदेश की राजनीती में कूदी आम आदमी पार्टी ने अभी तक एक भी परिवार के बिजली का बिल माफ़ या कम नही कराया है फिर भी बिजली को मुद्दा बनाकर राजनीती में छलांग लगा दी है,लेकिन बिना कुछ किये-कराये भी कैसे राजनीती की जा सकती है भला उनसे अच्छा कौन जान सकता है.
आगामी चुनौतियां
युवा मुख्यमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती 6 माह के अंतराल पर होने वाले विधान सभा चुनाव हैं. हालाँकि इतने कम समय में स्वंम को एक अनुभवी नेता के रूप में स्थापित करना तथा अपने मंत्रिमंडल के साथ जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना काफी मुश्किल काम लेकिन असंभव नही है.
70 सीटों पर होने वाला टिकट बंटवारा भी नयी मुसीबत को जन्म दे सकता है क्योंकी नाराज़ विधायक बगावत को जन्म देने का दायित्व साथ लेकर चलता है. चूंकि एक मुख्यमंत्री के कन्धों पर ही प्रदेश में पार्टी की हार-जीत की ज़िम्मेदारी होती है ऐसे में चुनाव प्रचार किस तरह किया जाना चाहिए, क्या पिछले विधान सभा चुनावों की रणनीति भी इस बार कारगर होगी या नयी रणनीति के साथ चुनावों के मैदान में उतरना पड़ेगा? वहीँ कोरोना की तीसरी लहर मुंह उठाये सिर पर खड़ी है. क्या इस आपदा को सीएम अवसर में बदल पाएंगे हालाँकि महामारी के चलतें,हो सकता है की चुनावी प्रचार के लिए समय की किल्लत हो और वर्चुअल संवाद को प्राथमिकता दी जाए लेकिन उसके लिए जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना बहुत ज़रूरी है. युवा मुख्यमंत्री जो की पहले भी दो बार युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुकें हैं उनकी युवाओं पर खासी पकड़ है वहीँ युवा मोर्चा के वर्तमान अध्यक्ष कुंदन लटवाल जो की युवाओं में “अबकी बार युवा सरकार, युवा सरकार 60 के पार” जैसा नारा देकर कार्यकर्ताओं में एक नयी स्फूर्ति का संचार कर रहे हैं वो काबिले तारीफ है.
इन चुनौतियों का सामनाकर अगर पुष्कर सिंह धामी सामने आतें है तो एक राजनीतिज्ञ की बजाय लीडर की छवि प्रस्तुत होगी जो निसंदेह लोगो पर अमिट छाप छोड़ेगी.
उत्तराखंड न्यूज़ एक्सप्रेस के लिए मोनिस मलिक का लेख
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