देहरादून-उत्तराखंड न्यूज़ एक्सप्रेस – प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज गृह मंत्री अमित शाह तथा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की तथा बागेश्वर-टनकपुर रेललाइन की स्वीकृति के लिए अनुरोध भी किया. लगभग 7,000 करोड़ रुपए की यह परियोजना एक लम्बे समय से लटकी हुई है. हालाँकि इस रेल-लाइन को बिछाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा लेकिन अगर धरातल पर पसीना बहाने की मात्रा बढ़ा दी जाए तो इस रेललाइन को कागजों से निकालकर पटरी पर दौड़ाया जा सकता है.
बागेश्वर के स्थानीय नागरिकों के लिए यह खबर काफी उम्मीदों भरी हो सकती है की उनका 100 वर्ष पूर्व देखा गया सपना, युवा मुख्यमंत्री के कार्यकाल में पूरा हो सकता है, इस बाबत प्रदेश के सीएम ने देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात कर उन्हें अनुरोध पत्र सौंपा. यह मुलाकात इस मायने में भी काफी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकी स्वम् मुख्यमंत्री का भी पैतृक गाँव भी पिथौरागढ़ ही है जिस कारण वो उस रेललाइन की महत्तवता समझतें हैं.
मुख्यमंत्री श्री @pushkardhami ने नई दिल्ली में गृह मंत्री श्री @AmitShah से शिष्टाचार भेंट कर कुमाऊं मंडल में एम्स, देहरादून में भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान की स्थापना एवं टनकपुर-बागेश्वर ब्रॉडगेज रेल लाइन के लिए उनके स्तर से संस्तुति किये जाने का अनुरोध किया। pic.twitter.com/Uxcw0C1kQa
— Uttarakhand DIPR (@DIPR_UK) August 11, 2021
नई दिल्ली में रक्षा मंत्री श्री @rajnathsingh जी से शिष्टाचार भेंट कर सामरिक महत्व को देखते हुए टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन ब्रॉडगेज की स्वीकृति के लिये रक्षा मंत्रालय के स्तर से भी संस्तुति करने का अनुरोध किया। pic.twitter.com/frgfII8SHb
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) August 11, 2021
आखिर क्या है यह बागेश्वर-टनकपुर रेल परियोजना ?
वक़्त आज से तक़रीबन 100 साल पीछे 1911-15 का, अंग्रेजों का शासन. तब अंग्रेजों ने बागेश्वर निवासियों को सपना दिखाया था एक रेल लाइन का जो बागेश्वर से शुरू होकर टनकपुर तक जाएगी. अंग्रेजों ने इस रेल लाइन का प्रारंभिक सर्वे भी करा लिया था लेकिन इससे पहले की कागजों से निकलकर रेल पटरी नही दौड़ सकी, देश की बागडोर देशवासियों के हाथ में आ गयी. 47 में आजादी मिलने के 60 साल बाद 2006-07 सरकार को इस रेललाइन की याद आई और सर्वे कराने के लिए टीम भेजी गयी.
हालाँकि उत्तराखंड के पृथक राज्य बनने की अवधारणा के पीछे एक कारण पहाड़ी राज्य का विकास भी था लेकिन इन बीस वर्षों में सरकारें बदलती रही और यह रेल लाइन सर्वे से आगे नही बढ़ पायी. देश की आजादी के बाद बागेश्वर के लोगों ने रेल लाइन के निर्माण की मांग उठानी शुरू कर दी थी। 80 के दशक में यह मांग परवान चढ़ी। बागेश्वर से लेकर पिथौरागढ़, चंपावत इलाके के लोग रेल लाइन निर्माण की मांग को लेकर लामबंद होने लगे। जनांदोलनों के पुरोधा बागेश्वर निवासी गुसाईं सिंह दफौटी के नेतृत्व में हुए आंदोलन ने शासकों की चूलें हिला दीं। आंदोलन ने सत्ताधारी दल के साथ ही विपक्षी दलों को भी आंदोलन का समर्थन करने के लिए मजबूर कर दिया।
बागेश्वर निवासी अरविन्द परिहार से जब उत्तराखंड न्यूज़ एक्सप्रेस ने बात तो उन्होंने बताया की “नगर वासियों के लिए बागेश्वर-टनकपुर रेलवे लाइन एक सपने की तरह है, जैसे भागीरथ गंगा को स्वर्ग से धरती पर लेकर आये थे वैसे ही बागेश्वर वालो को भी ऐसे ही किसी भागीरथ की तलाश है जो इस रेल परियोजना को कागजों से निकालकर धरती पर ले आये, अरविन्द आगे बोलतें है की रोजाना हजारों लोगो का नगर से हल्द्वानी तथा टनकपुर जाना होता है, जिसमे हमारा पूरा दिन सफ़र करने में निकल जाता है तथा पहाड़ों का की यात्रा सुगम ना होने के साथ साथ काफी महंगी भी होती है, अगर धामी सरकार यह रेल चलवा देती है तो इस हम लोगो की दिनचर्या काफी आसान हो जाएगी”
जब दवाब बढ़ा तो यह रेल लाइन नेताओं के चुनावी वादों में शामिल हो गयी लेकिन वही दूसरी तरफ संघर्ष चलता रहा. वर्ष 2006-07 में रेलवे मंत्रालय ने टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का प्रारंभिक सर्वे कराया। वर्ष 2015-16 में इस परियोजना को राष्ट्रीय महत्व की परियोजना में शामिल किया गया। वर्ष 2019-20 में फाइनल सर्वे कराया गया। 9 नवंबर 2020 को इज्जतनगर मंडल ने सर्वे रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भेज दी। सात महीने का समय बीत गया है लेकिन अभी तक स्वीकृति मिलने का इंतज़ार कर रही है.
क्या हैं अड़चने ?
यह रेलवे लाइन 154 किमी लम्बी होगी और इसके लिए 72 टनल बनाये जायेंगे वहीँ सबसे बड़ा टनल लगभग 5 किमी लम्बा होगा, कुल मिलाकर सभी टनलों की लम्बाई 53 किलोमीटर बैठेगी. मतलब की कुल यात्रा का एक तिहाई सफ़र सुरंगों से ही करना होगा. बागेश्वर। सर्वे के अनुसार टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन में 13 क्रॉसिंग स्टेशन और एक टर्मिनल बनाया जाएगा। क्रॉसिंग स्टेशन टनकपुर, पूर्णागिरि रोड, कालढूंगा, पोलाबन, चिनार, पंचेश्वर, कारीघात, विरकोला, नयाल, सल्यूट, जमनी, तालखोली और बागेश्वर में बनेंगे। रेल लाइन निर्माण का सर्वे एक सदी से भी पहले हो गया था। अंग्रेजों का दिखाया सपना आज तक पूरा नहीं हुआ है।
इस मामले में आपका क्या कहना है क्या आपको लगता है की प्रदेश की कमान अब उन हाथों में हैं जो इस रेल परियोजना को अमली जामा पहना सकतें है अथवा पहले की तरह सपना दिखाकर मामला फिर अधर में अटक जायेगा, आपकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण है.
उत्तराखंड न्यूज़ एक्सप्रेस के लिए मोनिस मलिक का लेख
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