
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक अहम निर्णय में स्पष्ट किया है कि वाहन चालक से केवल शराब की गंध आने को नशे की कानूनी पुष्टि नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि जब तक रक्त या श्वास परीक्षण से यह साबित न हो कि चालक का अल्कोहल स्तर कानूनी सीमा (30 मिलीग्राम प्रति 100 मिलीलीटर रक्त) से अधिक है, तब तक उसे नशे में वाहन चलाने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
मामला 2016 का है, जब रुद्रपुर सिडकुल चौक पर हुई दुर्घटना में 39 वर्षीय साइकिल सवार जय किशोर मिश्रा की मौत हो गई थी। परिवार ने 75 लाख रुपये मुआवजे की मांग की थी। जनवरी 2019 में निचली अदालत ने बीमा कंपनी को लगभग 21 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था, लेकिन यह भी कहा था कि वह रकम चालक और मालिक से वसूल सकती है, क्योंकि डॉक्टर ने चालक से शराब की गंध आने की बात कही थी।
न्यायमूर्ति आलोक महरा की अदालत ने इस निर्णय को पलटते हुए कहा कि बिना ब्लड या यूरिन टेस्ट के सिर्फ गंध या शक नशे का आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने आदेश दिया कि पूरा मुआवजा बीमा कंपनी ही देगी और चालक-मालिक से वसूली का कोई अधिकार नहीं रहेगा। साथ ही अपीलकर्ता की जमा बैंक गारंटी को भी रिलीज करने का निर्देश दिया गया।