
महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के अकोले तालुका के जांभले गांव में बुनियादी सुविधा की कमी ने एक बार फिर शासन-प्रशासन की उदासीनता को उजागर कर दिया। ठाकरवाड़ी इलाके की एक आदिवासी महिला को सड़क न होने के कारण अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका और उसे जंगल के बीचों-बीच बच्चे को जन्म देना पड़ा। यह घटना 29 मई को हुई, जो आज़ादी के सात दशक बाद भी देश के कई क्षेत्रों में विकास के अधूरे वादों की कहानी कहती है।
सड़क नहीं, मदद नहीं – जंगल बना प्रसव कक्ष
गर्भवती महिला प्रतीक्षा माधे को अचानक तेज प्रसव पीड़ा हुई। उनके पति दशरथ माधे ने ग्राम प्रधान राजेंद्र गावंडे से मदद की गुहार लगाई। गावंडे तुरंत अपनी कार लेकर पहुंचे, लेकिन हाल की बारिश ने कच्ची सड़क को कीचड़ में बदल दिया था। कार बीच रास्ते में ही फंस गई और इसी दौरान प्रतीक्षा की पीड़ा और बढ़ गई।
ग्रामीण महिलाओं ने संभाला मोर्चा
चिकित्सा सुविधा तक पहुंच न होने की स्थिति में प्रतीक्षा की मां, सास और गांव की एक महिला ने मिलकर जंगल में ही सुरक्षित प्रसव करवाया। बिना किसी डॉक्टर या उपकरण के, ग्रामीण महिलाओं की सूझबूझ और हिम्मत ने मां और बच्चे की जान बचाई। यह घटना न सिर्फ ग्रामीण महिलाओं की क्षमता को दर्शाती है, बल्कि सरकारी तंत्र की असफलता को भी उजागर करती है।
एम्बुलेंस तक पहुंचना भी बना चुनौती
प्रसव के बाद गांव वालों ने कीचड़ में फंसी कार को बाहर निकाला और किसी तरह एम्बुलेंस को बुलाया गया। ग्राम प्रधान गावंडे और स्वास्थ्य केंद्र के डॉ. सोनावणे की मदद से मां और नवजात को अस्पताल पहुंचाया गया। डॉक्टरों ने पुष्टि की कि दोनों की हालत स्थिर और सुरक्षित है।
अधूरी सड़क परियोजना बनी जानलेवा
गांव की यह हालत कोई नई नहीं है। साल 2015 में जांभले गांव तक दो किलोमीटर लंबी सड़क बनाने की योजना शुरू हुई थी, लेकिन बजट की कमी और वन विभाग की आपत्तियों के चलते यह अधूरी ही रह गई। नतीजा यह है कि आज भी गांववाले बरसात में कीचड़ भरे, जोखिम भरे रास्तों से गुजरने को मजबूर हैं।