
नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक महत्वपूर्ण सुनवाई हुई, जिसमें पूरे देश से आई 5 याचिकाओं पर विचार किया गया। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस पी. एस. नरसिंह की बेंच ने इस मामले में केंद्र, राज्य सरकारों और याचिकाकर्ताओं की दलीलों को सुना।
केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने स्पष्ट रूप से कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि अगर कोई ज़मीन सरकारी है, तो केवल उसे ‘वक्फ’ घोषित करने भर से सरकार का उस पर से अधिकार खत्म नहीं होता।
SG की प्रमुख दलीलें:
SG मेहता ने कोर्ट में कहा—
“मैं आदिवासियों की जमीन नहीं खरीद सकता, क्योंकि राज्य कानून इसकी अनुमति नहीं देता। उसी तरह अगर कोई वक्फ बनाकर उसका मुतवल्ली मनमानी करता है, तो कोर्ट उस वक्फ को रद्द कर सकती है।”
उन्होंने आगे कहा कि फाइनल फैसला आने तक कोर्ट कोई अंतरिम आदेश न दे, क्योंकि अगर संपत्ति वक्फ को सौंप दी गई, तो उसे वापस पाना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
“वक्फ अल्लाह का होता है, इसलिए उसे पुनः प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण बन जाता है।”
दान और वक्फ: दो अलग प्रक्रियाएं
SG ने यह भी स्पष्ट किया कि “वक्फ बनाना” और “वक्फ को दान देना” दो भिन्न प्रक्रियाएं हैं।
उन्होंने बताया कि कोई भी व्यक्ति वक्फ को दान दे सकता है—even हिंदू—but वक्फ बनाने के लिए जरूरी है कि दाता मुस्लिम हो और उसने कम से कम 5 वर्षों से इस्लामी जीवन पद्धति अपनाई हो।
“यह शर्त इसलिए रखी गई है ताकि कोई दुरुपयोग कर किसी और के अधिकारों पर कब्जा न कर सके।”
राजस्थान सरकार ने भी दिया समर्थन
राजस्थान सरकार की ओर से वकील राकेश द्विवेदी ने SG के तर्कों का समर्थन करते हुए कहा कि “वक्फ बाय यूजर” इस्लाम का आवश्यक हिस्सा नहीं है।
उन्होंने कहा कि यह परंपरा भारतीय उपमहाद्वीप तक सीमित है और अयोध्या फैसले में भी इस बात को तीन बार दोहराया गया है।
2013 के संशोधन पर भी उठे सवाल
SG ने कोर्ट को बताया कि 1923 से 2013 तक वक्फ बनाने की योग्यता केवल मुस्लिमों तक सीमित थी। लेकिन 2013 में इसे बदलकर “कोई भी व्यक्ति” कर दिया गया, जिसे अब हटाने की बात हो रही है।
“अगर कोई हिंदू व्यक्ति मस्जिद बनाना चाहता है, तो उसे वक्फ बनाने की जरूरत नहीं। वह एक सार्वजनिक ट्रस्ट के ज़रिए भी ऐसा कर सकता है, जैसा कि बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम में प्रावधान है।”
जनजातीय क्षेत्रों में भी वक्फ को लेकर विवाद
SG ने यह भी बताया कि जनजातीय क्षेत्रों से ऐसी शिकायतें आई हैं, जिनमें आरोप है कि वक्फ के ज़रिए ज़मीनों पर कब्जा किया जा रहा है।
“अगर कोई वक्फ कानून का सहारा लेना चाहता है, तो उसे पहले साबित करना होगा कि वह मुस्लिम है। यह शर्त जरूरी है।”
यह मुद्दा सैद्धांतिक नहीं, व्यावहारिक है
SG मेहता ने कहा कि यह मुद्दा सिर्फ कानूनी बहस नहीं, बल्कि ज़मीन से जुड़े वास्तविक अधिकारों से जुड़ा है।
“यह सिर्फ किताबों की बात नहीं है, ये जमीनी सच्चाई से जुड़ा मामला है, और इससे आम नागरिकों के हक़ प्रभावित होते हैं।”
SG का अंतिम स्पष्टीकरण
सुनवाई के अंत में SG ने साफ किया कि वे 1995 के वक्फ अधिनियम को चुनौती नहीं दे रहे हैं, लेकिन अगर किसी याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट भेजा जा रहा है, तो सभी को भेजा जाए—कोई भेदभाव न हो।
कपिल सिब्बल की भी मौजूदगी, सुनवाई जारी
इस मामले में AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी सहित अन्य याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल अपनी दलीलें रख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई आने वाले दिनों में और भी अहम मोड़ ले सकती है।