
दिल्ली की फैशन डिज़ाइनर अशिता सिंघल ने एक ऐसा काम कर दिखाया है, जो न सिर्फ कारोबार की मिसाल है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी प्रेरणा बन गया है। उन्होंने फैशन इंडस्ट्री के टेक्सटाइल वेस्ट यानी फेंके गए कपड़ों से एक ऐसा फैशन ब्रांड खड़ा किया, जिसका टर्नओवर अब 1 करोड़ रुपये से ज्यादा हो चुका है।
अशिता ने 2018 में 20 लाख रुपये से अपने स्टार्टअप ‘Paiwand Studio Pvt. Ltd.’ की शुरुआत की थी। उनका लक्ष्य था – कपड़ा कचरे को दोबारा उपयोग में लाकर टिकाऊ फैशन तैयार करना।
कचरा देखकर जागा आइडिया, जो बन गया मिशन
फैशन डिज़ाइन की पढ़ाई के दौरान अशिता ने देखा कि हर साल फैशन इंडस्ट्री में हजारों टन कपड़ा बेकार फेंक दिया जाता है। उन्होंने तय किया कि इन स्क्रैप कपड़ों को फिर से इस्तेमाल में लाकर कुछ नया और टिकाऊ बनाया जाएगा।
अब तक उनकी कंपनी ने 30,000 किलो से ज्यादा कपड़ा कचरा रिसायकल किया है, जिससे 66 लाख लीटर पानी की बचत और 1 लाख किलो CO₂ उत्सर्जन की रोकथाम हुई है – वह भी बिना किसी रसायन के उपयोग के।
बिजनेस मॉडल: रचनात्मकता और शिल्पकला का मेल
अशिता का बिजनेस मॉडल अपसाइक्लिंग + पारंपरिक हस्तकला पर आधारित है। वह फैशन ब्रांड्स, डिजाइनर्स और एक्सपोर्ट हाउस से स्क्रैप इकट्ठा करती हैं और फिर उसे हथकरघा, कढ़ाई, पैचवर्क आदि के जरिए शानदार फैब्रिक में बदलती हैं।
अब तक वो 50,000 मीटर से ज्यादा कपड़ा बेच चुकी हैं। इन फैब्रिक्स की कीमत ₹1,000 से ₹4,000 प्रति मीटर होती है। उनका ज्यादातर कारोबार B2B मॉडल से आता है, जिसमें फैशन हाउसेज़, होटल्स और डेकोरेटर्स शामिल हैं।
परिवार की चिंता, लेकिन आत्मविश्वास ने दिलाई मंज़िल
शुरुआत में परिवार को संदेह था कि पढ़ाई में तेज़ अशिता क्यों “कचरे” से कुछ बनाना चाहती हैं। लेकिन जब उन्हें अमेरिकी संस्था लॉरेट इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी नेटवर्क से अंतरराष्ट्रीय अनुदान मिला, तो घरवालों का नजरिया बदल गया।
बड़ा चैलेंज यह भी था कि डिजाइनर्स और बुनकर अपने स्क्रैप देने से डरते थे — कॉपी होने का डर था। लेकिन धीरे-धीरे भरोसा बना और दिल्ली-NCR के कारीगरों का साथ मिला।
स्टूडियो 2,000 से 7,000 वर्गफुट तक पहुंचा
ग्रेजुएशन के बाद अशिता ने नोएडा में एक छोटा स्टूडियो शुरू किया था जिसमें सिर्फ दो हथकरघे और पांच लोग थे। आज वह स्टूडियो 7,000 वर्गफुट में फैला है, जहां 12 हथकरघे और 35 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं।
उनका ब्रांड अब B2C मॉडल में भी उतर चुका है, जिससे आम ग्राहक भी उनके उत्पाद खरीद सकते हैं। इससे न सिर्फ कारोबार बढ़ा है, बल्कि स्थानीय कारीगरों को भी रोज़गार मिला है।
एक ब्रांड, जो सिर्फ फैशन नहीं, बदलाव का प्रतीक है
अशिता सिंघल की कहानी दिखाती है कि सस्टेनेबल फैशन सिर्फ एक ट्रेंड नहीं, बल्कि एक ज़रूरत है। उन्होंने यह साबित किया कि कचरा भी मूल्यवान हो सकता है, अगर उसे सही सोच और तकनीक से संभाला जाए।
आज उनका ब्रांड न सिर्फ बाजार में पहचान बना चुका है, बल्कि पर्यावरण, समाज और शिल्प के प्रति ज़िम्मेदारी की मिसाल भी बन गया है।