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दिल्ली हाई कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को डाबर इंडिया के खिलाफ चल रहे टीवी विज्ञापनों पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि पतंजलि अब डाबर के च्यवनप्राश को नीचा दिखाने वाले किसी भी तरह के विज्ञापन का प्रसारण नहीं कर सकता। यह आदेश डाबर द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के बाद दिया गया है।
डाबर की दलीलों को गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने पतंजलि को ऐसे सभी विज्ञापनों को तुरंत रोकने का निर्देश दिया। डाबर ने अदालत से अंतरिम राहत मांगी थी, जिसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने पतंजलि के टीवी विज्ञापनों पर फिलहाल रोक लगा दी।
डाबर इंडिया का कहना है कि पतंजलि उनके प्रोडक्ट को बदनाम करने के लिए भ्रामक और झूठे दावे कर रहा है। याचिका में बताया गया कि कोर्ट से नोटिस मिलने के बाद भी पतंजलि ने हाल के हफ्तों में 6,182 बार ऐसे विज्ञापन प्रसारित किए। डाबर ने आरोप लगाया कि पतंजलि अपने च्यवनप्राश में 51 जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल का दावा करता है, जबकि हकीकत में सिर्फ 47 जड़ी-बूटियां ही पाई गईं।
पिछली सुनवाई में डाबर ने कहा था कि पतंजलि अपने विज्ञापनों में उन्हें ‘साधारण’ बता रहा है, जबकि डाबर देश में च्यवनप्राश का सबसे बड़ा ब्रांड है जिसकी बाजार हिस्सेदारी 61.6% है। डाबर ने यह भी कहा कि पतंजलि ऐसे दावे कर रहा है जिससे यह प्रतीत होता है कि केवल वही असली च्यवनप्राश बना सकते हैं क्योंकि उन्हें आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान है, जिससे डाबर के उत्पाद की साख को नुकसान पहुंच रहा है।
डाबर ने एक और गंभीर आरोप लगाया कि पतंजलि के च्यवनप्राश में पारा (Mercury) मौजूद है, जो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
कोर्ट के इस फैसले के बाद पतंजलि को अपने विज्ञापनों में बदलाव करना होगा और किसी भी प्रतिस्पर्धी ब्रांड को निशाना बनाने से बचना होगा।