
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए पतंजलि आयुर्वेद को डाबर इंडिया के खिलाफ टेलीविजन पर नकारात्मक विज्ञापन दिखाने से रोक दिया है। कोर्ट का यह आदेश डाबर द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें कंपनी ने पतंजलि पर उनके उत्पाद की छवि खराब करने का आरोप लगाया था।
क्या है मामला?
डाबर इंडिया का आरोप है कि पतंजलि अपने विज्ञापनों के जरिए डाबर के च्यवनप्राश को नीचा दिखा रहा है। डाबर ने कोर्ट को बताया कि नोटिस मिलने के बावजूद पतंजलि ने हाल के हफ्तों में 6,000 से ज्यादा बार ऐसे विज्ञापन प्रसारित किए हैं, जो न केवल भ्रामक हैं बल्कि उनकी ब्रांड साख को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
पतंजलि के दावों पर सवाल
डाबर ने आरोप लगाया कि पतंजलि अपने च्यवनप्राश में 51 जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल का दावा कर रहा है, जबकि वास्तव में उसमें केवल 47 जड़ी-बूटियां पाई गई हैं। इससे उपभोक्ताओं को भ्रमित किया जा रहा है। साथ ही, पतंजलि यह प्रचारित कर रहा है कि ‘असली च्यवनप्राश’ वही बना सकते हैं जिन्हें आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान हो – जो अप्रत्यक्ष रूप से डाबर के उत्पाद को नकली या घटिया दिखाने का प्रयास है।
डाबर की बाजार स्थिति
डाबर ने कोर्ट में यह भी बताया कि भारत के च्यवनप्राश बाजार में उनकी हिस्सेदारी करीब 61.6% है, और वे इस क्षेत्र के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं। ऐसे में इस तरह के विज्ञापनों से उनके ब्रांड को भारी नुकसान हो सकता है।
गंभीर आरोप: बच्चों के लिए हानिकारक?
डाबर ने एक और गंभीर दावा करते हुए कहा कि पतंजलि के च्यवनप्राश में पारा (Mercury) पाया गया है, जो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
कोर्ट का निर्देश
इन सभी तथ्यों पर गौर करते हुए हाई कोर्ट ने पतंजलि को डाबर के खिलाफ ऐसे किसी भी तरह के टीवी विज्ञापन चलाने से तत्काल रोक दिया है। यह अंतरिम आदेश है और अगली सुनवाई में मामले की विस्तृत जांच हो सकती है।