
अमेरिका ने रूस के साथ व्यापारिक रिश्ते निभा रहे देशों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की तैयारी कर ली है। खासतौर पर भारत और चीन जैसे देशों को अब झटका लग सकता है, जो रूस-यूक्रेन युद्ध के बावजूद अब भी रूस से तेल की खरीद कर रहे हैं। इसको लेकर अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने एक कठोर बिल पेश किया है, जिसमें रूस से व्यापार करने वाले देशों पर 500% तक आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने का प्रस्ताव है।
ट्रंप का समर्थन और बिल की खास बातें
इस बिल को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन मिल चुका है। सीनेटर ग्राहम का कहना है कि ट्रंप ने इसे जुलाई के बाद संसद में वोटिंग के लिए पेश करने की अनुमति दे दी है। बिल का उद्देश्य रूस की सैन्य क्षमताओं को कमजोर करना और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन विवाद पर बातचीत के लिए मजबूर करना है।
ग्राहम ने साफ किया कि यह बिल मुख्य रूप से उन देशों को निशाना बनाता है जो रूस से तेल और अन्य वस्तुओं की खरीदारी कर रहे हैं। उनका दावा है कि रूस के कुल तेल निर्यात का 70% हिस्सा भारत और चीन द्वारा खरीदा जाता है। अमेरिका इसी व्यापार पर अंकुश लगाकर रूस की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाना चाहता है।
बिल में यह भी प्रावधान है कि राष्ट्रपति ट्रंप को इसे लागू करने या न करने का विशेषाधिकार होगा। सीनेट के 84 सांसद इस प्रस्ताव का समर्थन कर चुके हैं।
भारत पर क्या होगा प्रभाव?
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदने की रणनीति अपनाई थी। दोनों देशों ने व्यापार में डॉलर के बजाय रूपया-रूबल प्रणाली का उपयोग किया। इससे भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी और यह 1% से 44% तक पहुंच गई।
जून में भारत ने रूस से 2 से 2.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन तेल आयात करने का लक्ष्य रखा है, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। अगर अमेरिका यह बिल पारित करता है और भारत से आने वाले सामानों पर भारी टैक्स लगाया जाता है, तो इससे भारत का अमेरिकी बाजार में निर्यात प्रभावित हो सकता है। हालांकि दोनों देशों के बीच एक व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है, लेकिन इस बिल के लागू होने से भारत को तात्कालिक झटका लग सकता है।
रूस की प्रतिक्रिया
रूस ने इस प्रस्ताव पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने सीनेटर ग्राहम को “रूस-विरोध का चेहरा” बताया और कहा कि अगर ग्राहम की मर्जी चलती तो ये प्रतिबंध कब के लागू हो चुके होते। पेसकोव ने सवाल किया कि क्या इस तरह की सख्ती यूक्रेन संकट का समाधान निकाल सकती है।