करसोग उपमंडल के कलैहणी गांव की संतोषी देवी ने ढींगरी मशरूम की जैविक खेती कर स्वावलंबन की राह पकड़ी है। संतोषी देवी ने जनवरी 2023 में खंड विकास कार्यालय करसोग से राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत मशरूम की जैविक खेती का 10 दिन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके पश्चात उन्होंने घर के एक कमरे में ढीगंरी मशरूम की खेती शुरू की। जमा दो पास संतोषी देवी ने घर के कमरे में 17 बैगों में ढींगरी मशरूम की जैविक खेती की।
उन्हें उम्मीद से कहीं ज्यादा ढींगरी मशरूम की फसल मिली। आम तौर पर ढींगरी मशरूम की फसल तैयार होने के बाद, उसकी दो से तीन बार कटाई की जाती है। लेकिन संतोषी देवी ने चार से पांच बार कटाई की। संतोषी देवी करसोग बाजार में हिम ईरा नाम से दुकान भी चला रही हैं। यहां पर घर में तैयार किए जाने वाले जैविक ढींगरी मशरूम को 250 से 300 रुपये प्रति किलोग्राम बेचा जाता है। संतोषी का कहना है कि इस काम को शुरू करने से पहले, उनकी अपनी आय नहीं थी।
घर के कार्यों में ही समय बीत जाता था। स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हुई महिलाओं के लिए आजीविका मिशन के तहत ढींगरी मशरूम की खेती करने संबंधी प्रशिक्षण दिए जाने की जानकारी खंड विकास कार्यालय करसोेग से मिली। उसके बाद ढींगरी मशरूम की खेती करने का प्रशिक्षण हासिल किया। इसे अपनी स्वतंत्र आय का जरिया बनाया। उनका कहना है कि परिवार के लोगों ने भी इस कार्य में सहयोग किया।
अब वे इस कार्य से प्रतिमाह चार से पांच हजार और 50 से 60 हजार रुपये वार्षिक आय अर्जित कर रही हैं। इससे परिवार की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ हुई है। संतोषी देवी ने बताया कि इस कार्य को शुरू करने के लिए उन्होंने केवल मात्र 500 रुपए खर्च किए। इनका कहना है कि मशरूम की अन्य किस्मों को उगा कर इस कार्य को साल भर किया जा सकता है, जो आय का एक बेहतर विकल्प है।