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उत्तराखंड के दोनों कोहिनूर एक साथ सुर्खियों में

भारत में यदि खेल की बात हो तो सबसे ऊपर क्रिकेट की बात आती है और भारत में क्रिकेट प्रेमी भी बेशुमार है। किन्तु इन दिनों बैडमिंटन का खेल सुर्खियों में है, बैडमिंटन खेल के अद्वितीय ख़िलाड़ी लक्ष्य सेन के कुछ अनसुने अनछुए पहलु पर नज़र डालेंगे। कच्ची उम्र से ही लक्ष्य बैडमिंटन के दीवाने रहे है। आपको बताते चले की अल्मोड़ा उत्तराखंड की जान लक्ष्य सेन के पितामह ( दादा ) भी बैडमिंटन खेल में चर्चित थे। सिर्फ उनके दादा ही नहीं उनके पिता और बड़े भाई चिराग सेन भी अच्छे बैडमिंटन प्लेयर है।

लक्ष्य ने 2012 में अंडर 13 नेशनल बैडमिंटन टाइटल अपने नाम किया था। उसके उपरांत वर्ष 2015 में अंडर 17 नेशनल बैडमिंटन चैंपियन का खिताब अपने नाम किया। इसके साथ-साथ 7 ओपन इंटरनेशनल सीरीज और 2 सुपर हंड्रेड टूर्नामेंट जीतकर अपने राज्य को गौरवांवित किया। जीत का सिलसिला यूहीं बरक़रार रहा और खेल के प्रति लक्ष्य का प्रेम और समर्पण भाव बढ़ता गया। वर्ष 2016 में पहली बार लक्ष्य ने बड़े स्तर पर एशिया जूनियर चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर कीर्तिमान रचा और उसके बाद तो लक्ष्य का लक्ष्य दिन दोगुनी रात चौगुनी बढती गया और उनका जज़्बा आसमान के बुलंदियों को चुनौती देने लगा और युवा खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों के चहेते बन गए लक्ष्य।

वर्ष 2018 में लक्ष्य ने 53 वर्ष का रिकॉर्ड तोड़ कर एशिया जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर अपने राज्य का ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत वर्ष का ध्वज एशिया में लहराया। लक्ष्य के विशाल लक्ष्य को यदि देखे तो इसमें दर्जनों खिताब शुमार है और लक्ष्य का विजय रथ इंग्लैंड के कुरुक्षेत्र के अंतिम मुकाबले तक पंहुचा और अपने प्रतिद्वंदी से खूब द्वंध किया। हालाँकि वह अंतिम और निर्णायक मुकाबले में हार जरुर गए किन्तु उनका हौसला अटूट और अखंड रहा। अल्मोड़ा उत्तराखंड के कोहिनूर लक्ष्य, इन दिनों काफ़ी सुर्खियों में चल रहे है। देश के बड़े खिलाडियों के साथ साथ चर्चित नेता की भी जुबान और दिल पर इन दिनों लक्ष्य राज कर रहे है। चारो तरफ लक्ष्य की विजय यात्रा की गाथा सुनने को मिल रही है। इसके अलावा अल्मोड़ा के धावक प्रदीप मेहरा भी सुर्खियों में बने है। उनकी बेमिसाल उर्जा सेहेंशीलता और साहस की पराकाष्ठा चारो तरफ हो रही है।

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